जब अर्जुन के बड़े भाई युधिष्ठिर जुए में अपना सारा राज्य और अपना सारा धन-वैभव हार गये| दुर्योधन ने उनकी सारी दोंलत जीत ली| शर्तो के मुताबिक उसने युधिष्ठिर और उनके भाईयो आदि को 13 वर्ष के लिये देश से भी निकाल दिया|
वे लोग वन-वन मारे-मारे फिरे| दुर्योधन की दुष्टता को देखकर उनके मन में शक हुआ कि शर्तें पूरी हो जाने ओर 13 वर्ष बीत जाने पर भी वह हमे हमारा राज्य न लौटावेगा| उससे युद्ध जरूर करना; और युद्ध में ताकतवर की ही जीत होती है| इस वजह से हम लोगों को खूब बलवान हो जाना चाहिये| इस पर व्यासजी ने अर्जुन को तपस्या करने की सलाह दी| उनकी सलाह से वे हिमालय के इंद्रकील नामक शिखर पर इन्द्र कि तपस्या करने लगे| इन्द्र उन पर खुश हुआ| उसने कहा – तुम महादेवजी की तपस्या करो | उनके पास एक बड़ा अनोखा हथियार है | उसका नाम है - पाशुपत अस्त्र | वह तुम्हें यदि मिल जाए तो तुम अपने शत्रुओं को युद्ध में जरूर ही हरा सकोगे|
तब अर्जुन महादेवजी की तपस्या करने लगे| बहुत समय बीत जाने पर महादेवजी को इसकी खबर हुई| इस पर उन्होने कहा, चलो देखो तो इस तपस्वी में कितना बलविक्रम है जो यह पाशुपतास्त्र पाने की इच्छा रखता है | अर्जुन कि परीक्षा लेने के लिये उन्होने किरात का रूप धारण करा| वे अर्जुन के आश्रम के पास पहूँच गये| इतने मे अर्जुन को सामने सूअर आता हुआ दिखायी दिया| वह अर्जुन पर चोट करने के लिये दौडा| अर्जुन ने उसे अपने बाण से मार गिराया| उधर किरात-रूपी शिवजी ने भी उस पर बाण चलाया| दोनों के बाण सूअर पर साथ ही लगे और उससे शरीर को छेदकर बाहर निकल गये|
सूअर को गिरा देख अर्जुन अपना बाण उठाने आए - वही बाण जिससे उन्होने सूअर मारा था| उधर महादेवजी का भी एक आदमी उसे उठाने आया| पर महादेवजी का बाण सूअर को छेदकर जमीन के भीतर घुस गया था| अर्जुन का बाण बाहर ही रह गया था| उसे उन्होने उठा लिया| अर्जुन कहने लगे, यह बाण मेरा है| महादेवजी का आदमी कहने लगा, यह मेरे मालिक किरातराज का है| इस प्रकार बड़ी देर तक दोनों में कहा-सुनी होती रही| इसके बाद महादेवजी के नोकर ने अर्जुन को धमकाना शुरू किया| इस पर अर्जुन को क्रोध आ गया|
उन्होने कहा -- अच्छा, जा ,तेरा मालिक जो इतना बल रखता है तो आवे ओर मुझसे यह बाण जबरदस्ती चीन ले जाए| यह मेरा है, तेरे मालिक का नहीं । देखूँ , वह कैसे ले जाता है|
तब किरातों की एक बड़ी सेना लेकर किरात ही के वेश में महादेवजी ने अर्जुन पर चढ़ाई कर दी| खूब युद्ध हुआ| अर्जुन ने बड़ी वीरता दिखाई| उन्होने किरातों की सेना के छक्के छुड़ा दिये| महादेवजी को भी खूब तंग किया| आजिज़ आकर महादेवजी ने अर्जुन के धनुष , बाण , तलवार –सब शस्त्र काट डाले| तब अर्जुन महादेवजी के साथ मल्ल-युद्ध करने लगे| एक दफ़े अर्जुन को घूँसे लगाकर महादेवजी ऊपर को उछल गये| यह अच्छा मौका हाथ आया देख ,अर्जुन ने महादेवजी का पैर ऊपर ही पकड़ लिया और बोले – ले, अब पटकता हूँ| अर्जुन का यह बल और पराक्रम देखकर महादेवजी उन पर बहुत खुश हुए| किरात का वेश छोड़कर वे अपने असली वेश में हो गये| तब अर्जुन उन्हें पहचान कर उनके पैरों पर गिर पड़े| महादेवजी ने उनको उनका मनचाहा पाशुपतास्त्र दे दिया| इतने में इन्द्र आदि और भी कई देवता वहाँ आ गये| उन्होने भी अर्जुन को कई हथियार दे दिये| अर्जुन उन सबको लेकर खुशी-खुशी अपने भाई युधिष्ठिर के पास लौट आए|

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