एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी मृत्युलोक में विवाह की इच्छा करके माता पार्वती के साथ पधारे। विदर्भ देश की अमरावती नगरी जो कि सभी सुखों से परिपूर्ण थी वहां पधारे. वहां एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे.
एक बार पार्वती जी ने चौसर खलने की इच्छा की. तभी मंदिर में पुजारी के प्रवेश करने पर माताजी ने पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की, लेकिन पार्वती जी जीत गयी। तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। कई दिनों के पश्चात देवलोक की अपसराएं, उस मंदिर में पधारीं और उसे देखकर कारण पूछा। पुजारी ने निःसंकोच सब बताया। तब अप्सराओं ने ढाढस बंधाया और सोलह सोमवार के व्रत रखने को बताया। इससे शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। फ़िर अप्सराएं स्वर्ग को चलीं गयी। ब्राह्मण ने सोमवार का व्रत कर के रोगमुक्त होकर जीवन व्यतीत किया। कुछ दिन उपरांत शिव पार्वती जी के पधारने पर पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने का करण पूछा. तब ब्राह्मण ने सारी कथा बतायी। तब पार्वती जी ने भी यही व्रत किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। उनके रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए। परन्तु कार्तिकेय जी ने अपने विचार परिवर्तन का कारण पूछा। तब पार्वती जी ने वही कथा उन्हें भी बतायी। तब स्वामी कार्तिकेय जी ने भी यही व्रत किया। उनकी भी इच्छा पूर्ण हुई। उनसे उनके मित्र ब्राह्मण ने पूछ कर यही व्रत किया। फ़िर वह ब्राह्मण विदेश गया और एक राजा के यहां स्वयंवर में गया, वहां राजा ने प्रण किया था, कि एक हथिनी एक माला, जिस के गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री का उसी से विवाह करेगा। वहां शिव कृपा से हथिनी ने माला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी. राजा ने उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। उस कन्या के पूछने पर ब्राह्मण ने उसे कथा बतायी। तब उस कन्या ने भी वही व्रत कर एक सुंदर पुत्र पाया। बाद में उस पुत्र ने भी यही व्रत किया और एक वृद्ध राजा का राज्य पाया। जब वह नया राजा सोमवार की पूजा करने गया, तो उसकी पत्नी अश्रद्धा होने से नहीं गयी। पूजा पूर्ण होने पर आकाश वाणी हुई, कि राजन इस कन्या को छोड़ दे, अन्यथा तेरा सर्वनाश हो जायेगा।अंत में उसने रानी को राज्य से निकाल दिया।वह रानी भूखी प्यासी रोती हुई दूसरे नगर में पहुंची। वहां उसे एक बूढ़ी औरत मिली जो धागे बनाती थी। वह उसके साथ काम करने लगी पर दुसरे दिन जब वो धागा बेचने निकली तो अचानक तेज हवा चली और सारे धागे उड गए तो मालिकिन ने गुस्से मे आकर उसे काम से निकाल दिया। फिर रोते फिरते वह एक तेली के घर पहुँची तेली ने उसे रख लिया पर भन्डार घर मे जाते ही तेल के बर्तन गिर गए और तेल बह गया तो उस तेली ने उसे घर से निकाल दिया। इस प्रकार सभी जगह से निकाले जाने के बाद वह एक सुन्दर वन मे पहुँची वहाँ के तालाब से पानी पीने के लिए जब आगे बढ़ी तो तालाब सुख गया थोडा पानी बचा जो कि कीटों से युक्त था। उस पानी को पीकर वो एक पेड़ के नीचे बैठ गई पर तुरंत उस पेड़ के पत्ते झड गए। इस तरह वो जिस पेड़ के नीचे से गुजरती वह पेड़ पत्तो से बिहिन हो जाता ऐसे ही सारा वन सूखने को आया। यह देखकर कुछ चरवाहें उस रानी को एक शिवमंदिर के पुजारी के पास ले गए। वहा रानी ने पुजारी के आग्रह से सारी बात बतायी, और सुनकर पुजारी ने कहा की तुम्हे शिव का श्राप लगा है। रानी ने विनती करके पूछा तो पुजारी ने इसके निदान का उपाय बताया और सोमवार व्रत की विधि बताई। रानी ने तनमन से व्रत पूरा किया और शिव की क्रिपा से सत्रहवे सोमवार को राजा का मन परिवर्तन हुआ । राजा ने रानी को ढुढने दूत भेजे। पता लगने के बाद राजा ने बुलावा भेजा पर पुजारी ने कहा राजा को स्वयं भेजो। इस पर राजा ने विचार किया और स्वयं पहुचे। और रानी को उनका स्थान दिया। सम्पुर्ण नगर मे खुशिया मनाई गई । इस प्रकार जो भी मनुष्य श्रद्धा पूर्वक नियम से 16 सोमवार का व्रत करेगा वह इस लोक मे परम सुखो को प्राप्त कर अंत मे परलोक मे मुक्ती प्राप्त करेगा।

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