Friday, January 27, 2017

अच्छा, तो इसलिए महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर हनुमान जी विराजमान रहते थे।

अर्जुन को अपने धनुर्विद्या पर अधिक ही अभिमान था। किसी समय वह अपने हाथों में गांडीव को धारण कर किसी नदी के किनारे घूम रहे थे वहां उन्हें एक बूढ़ा बंदर दिखाई पड़ा। उन्होंने उन्हें प्रणाम कर पूछा आप कौन हैं?  बंदर ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया - मैं रामदास हनुमान हूं।

अर्जुन ने पुनः पूछा- आप उन्हीं श्री रामचंद्र के सेवक हैं जिन्होंने अपने बाणों से समुद्र पर पुल का निर्माण न करने के कारण बंदरों द्वारा पत्थर का पुल बनवाया था तब कहीं उनकी सेना समुद्र पार कर सकी । यदि उस समय मैं वहां रहता तो बाणों का  ऐसा सुदृढ़  पुल का निर्माण   करता जिससे सेना सहज ही समुद्र को पार कर पाती। हनुमान जी ने नम्रता से ही उत्तर दिया- किंतु तुम्हारे द्वारा निर्मित पुल, श्रीराम की सेना के सबसे दुर्बल बंदर का भी भार सहन करने में समर्थ नहीं होता।
अर्जुन ने कहा- मैं इस नदी के ऊपर बाणों का पुल निर्माण कर रहा हूं; आप इसके ऊपर कितना भी भार लेकर उस पार चले जाएं।
हनुमान जी ने विराट रूप धारण कर हिमालय की ओर छलांग लगाई एवं रोम-रोम में बड़े-बड़े पत्थरों को धारण कर ज्योँ ही प्रथम चरण पुल के ऊपर रखा पुल चरमरा उठा किंतु, आश्चर्य की बात, पुल टूटा नहीं।
अर्जुन डर से कांप उठे। उन्होंने अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण का स्मरण किया प्रभु पाण्डवों की लज्जा आपके हाथों में है।
उधर हनुमान जी ने भी दोनों पैर का भार उस पुल पर रखा किंतु पुल के न टूटने पर उन्हें भी आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। यदि पुल ना टूटा तो बड़ी भारी लज्जा की बात होगी। उन्होंने मन ही मन अपने इष्ट देव श्रीरामचंद्र का स्मरण किया। इतने में उनकी दृष्टि पुल के नीचे जल पर पड़ी वहां उन्होंने जल नहीं वरन रक्त की धार को प्रवाहित होते देखा। तत्क्षणात् उतर कर उन्होंने पुल के नीचे झाकां। अरे यह क्या मेरे इष्टदेव स्वयं श्रीरामचंद्र अपनी  पीठ  लगाकर पुल की रक्षा कर  रहे हैं। तत्क्षण वे श्रीराम के चरणो में प्रणत हुए।और अर्जुन ने उनको श्रीराम के रुप में नहीं बल्कि श्रीकृष्ण के रूप में देखा। दोनों ही नतमस्तक हो गये।
उनके इष्ट देव ने कहा- मेरे दोनों ही स्वरुप में कुछ भी अंतर नहीं है मैं कृष्ण ही मर्यादा स्थापक के रूप में राम हूं तथा मैं लीला पुरुषोत्तम के रूप में अखिल रसामृत मूर्ति कृष्ण हूं।  आज से तुम मेरे दोनों ही सेवक मित्र बन जाओ। अभी आगामी युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा में विराजमान रह कर यह महाबली हनुमान जी सभी प्रकार से अर्जुन की रक्षा करेंगे इसलिए महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर हनुमान जी विराजमान रहते थे।

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