प्राचीन समय की बात है एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था। परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी।
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पति देव ने साधु वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पति देव से बोली हे साधु महाराज मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पति देव ने साधु वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पति देव से बोली हे साधु महाराज मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
बृहस्पति देव ने कहा- हे देवी तुम बड़ी विचित्र हो संतान और धन से कोई दुखी होता है अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग बगीचों का निर्माण कराओ ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक परलोक सार्थक हो सकता है, परंतु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को खुशी नहीं हुई, उसने कहा मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है जिसे मै दान दू।
बृहस्पति देव बोले - यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केसों को भी पीली मिट्टी से धोना, केसों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा इतना कहकर बृहस्पति देव अंतर्ध्यान हो गए व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उस की सब धन संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और शहर में बेचता। इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया वहां एक वृक्ष के नीचे बैठा अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा उस दिन बृहस्पतिवार था तभी वहां बृहस्पति देव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले हे मनुष्य तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है तब व्यापारी बोला हे महाराज आप सब कुछ जानते हैं इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुना कर रो पड़ा बृहस्पति देव बोले देखो बेटा तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पति देव का पाठ कर दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बाँट दो और स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे। साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला- महाराज मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं। इस पर साधू जी बोले की तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिस से तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे लकड़हारे ने लकडी काटी और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना गुड़ लेकरकथा की प्रसाद बांट कर स्वयं भी खाया उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगी। परंतु अगले बृहस्पतिवार को कथा करना भूल गया अगले दिन वहां के राजा ने यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के भोज का आयोजन किया राजा कि आज्ञा के अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोजन करने गया लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे अतः उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया जब वे दोनों लौटकर आए तब रानी ने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर लिया गया कैद में पड़ कर दोनों अत्यंत दुखी हुए वहां उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे बृहस्पतिवार को कैद खाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी व्यापारी ने उसे बुलाकर गुड और चने लाने को कहा इस पर वह स्त्री बोली मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं मेरे पास समय नहीं है इतना कहकर वह चली गई थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा की है बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी तुम मुझे दो पैसे का गुड़ चना ला कर दे दो बृहस्पति देव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली भाई मैं अभी गुड चना ला कर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी, लेकिन मैं पहले तुम्हारा काम करूंगी। उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफन लाऊंगी स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़ चना ले आई। और स्वयं भी बृहस्पति देव की कथा सुनी, कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर, अपने घर गई घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को राम राम सत्य कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे, स्त्री बोली मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो, अपने पुत्र का मुख देख कर उस स्त्री ने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुनः जीवित हो गया।
पहली स्त्री जिसने बृहस्पति देव का निरादर किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाहित पुत्र वधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी की वह घोड़ी से गिरकर मर गया यह देख कर वह स्त्री रो-रो कर बृहस्पति देव से क्षमा याचना करने लगी स्त्री की याचना से बृहस्पति साधु वेश मे वहां पहुंच कर कहने लगे तुम्हें अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है यह बृहस्पति देव का अनादर करने के कारण हुआ है तुम वापस जाकर मेरे भक्तों से क्षमा मांग कर कथा सुनो तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कथा के उपरांत अपने घर वापस गई घर आकर उसने अपने मृत पुत्र के मुख में चरणामृत डाला के चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र जीवित हो उठा उसी रात बृहस्पति देव राजा के सपने में आए और बोले हे राजन तूने जिस व्यापारी और उसकी पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिल्कुल निर्दोष है तुम्हारी रानी का हार वही खूंटी पर टंगा है दिन निकला तो राजा रानी ने हार खूंटी पर लटका हुआ देखा राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाकर दहेज में हीरे जवाहरात दिए।
बृहस्पतिवार की कथा सम्पूर्ण।

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